फ़ख़रुद्दीन अली अहमद -जन्म: (13 मई, 1905)

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ( जन्म: 13 मई, 1905 - मृत्यु: 11 फ़रवरी, 1977) भारतवर्ष के पाँचवें राष्ट्रपति (नाम के अनुसार फ़ख़रुद्दीन अली अहमद पाँचवें राष्ट्रपति और कार्यकाल के अनुसार यह छठे राष्ट्रपति) के रूप में जाने जाते हैं। इनका राष्ट्रपति चुना जाना भी भारतवर्ष की धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक व्यवस्था का एक ज्वलंत प्रमाण है। 'मुस्लिम वर्ग को स्वतंत्र भारत में सम्मान नहीं प्राप्त हो सकेगा' इस कल्पित आधार के कारण भारत का विभाजन किया गया था। मुस्लिम लीग और उसके नेताओं ने सत्ता लोलुपता के कारण परस्पर सौहार्द्र को भी भारी क्षति पहुँचाई थी। लेकिन फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के रूप में जब दूसरा मुस्लिम व्यक्ति भारत का राष्ट्रपति बना तो यह स्पष्ट हो गया कि भारतीय संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता का विश्व में कोई सानी नहीं है।
जन्म-
फ़ख़रुद्दीन अली अहमद का जन्म 13 मई 1905 को पुरानी दिल्ली के हौज़ क़ाज़ी इलाक़े में हुआ था। इनके पिता का नाम 'कर्नल जलनूर अली अहमद' और दादा का नाम 'खलीलुद्दीन अहमद' था। फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के दादा गोलाघाट शहर के निकट कदारीघाट के निवासी थे, जो असम के सिवसागर में स्थित था। इनके दादा का निकाह उस परिवार में हुआ था, जिसने औरंगजेब द्वारा असम विजय के बाद औरंगजेब के प्रतिनिधि के रूप में असम पर शासन किया था। फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के पिता तब अंग्रेज़ सेना में इण्डियन मेडिकल सर्विस के तहत कर्नल के पद पर थे। इन्हें एक घटना के कारण असम छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। एक दिन फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के पिता कर्नल जलनूर अली अपने साथियों तथा कर्नल सिबरान बोरा के साथ शिलांग क्लब के एक समारोह में यूरोपियन अतिथियों से अलग स्थान पर बैठे हुए थे। तभी दो असमी कर्नलों ने समारोह का यह कहते हुए बहिष्कार कर दिया कि उन्हें समारोह में पृथक रखा गया है। इससे समारोह में व्यवधान पड़ा और कुछ कुपित यूरोपियन अधिकारियों ने कर्नल जलनूर अली अहमद का स्थानांतरण उत्तर पश्चिमी इलाके में कर दिया। स्थानांतरण के बाद जलनूर अली अहमद को लोहारी के नवाब के क़रीब आने का मौक़ा प्राप्त हुआ, जब यह दिल्ली में थे। उस परिचय के बाद नवाब जियाउद्दीन अहमद के साथ कर्नल जलनूर अली अहमद की निकटता काफ़ी बढ़ गई। फिर 1900 में इनका निकाह नवाब साहब की पोती के साथ पढ़ दिया गया लोहारु स्टेट के नवाब की पौत्री के साथ निकाह होना बेहद सम्मान की बात थी। इनकी बेगम का नाम रुकैय्या था। फ़ख़रुद्दीन अली अहमद इनके ही पुत्र हैं। फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के चार भाई और पाँच बहनें थीं। यह अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। फ़ख़रुद्दीन अली अहमद न केवल एक नामी मुस्लिम घराने में पैदा हुए थे, बल्कि इनके परिवार में बेहद सम्पन्नता और शिक्षा के प्रति अच्छी जागृति भी थी। इनकी आरंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश गोंडा सरकारी हाई स्कूल में सम्पन्न हुई लेकिन 1918 में पिता का स्थानांतरण दिल्ली हो गया। तब यह भी दिल्ली आ गए। उस समय वह सातवीं कक्षा के छात्र थे। 1921 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद फ़ख़रुद्दीन अली अहमद प्रसिद्ध स्टीफन कॉलेज में दाखिल हुए। कुछ समय पश्चात यह उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैण्ड चले गए। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अंतर्गत इनका दाखिला सेंट कैथरिन कॉलेज में हो गया। 1927 में फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने स्नातक स्तर की शिक्षा तथा 1928 में विधि की शिक्षा सम्पन्न कर ली। विधि की डिग्री लेने के बाद यह भारत लौट आए और पंजाब हाई कोर्ट में वकील के तौर पर नामांकित हुए।
राष्ट्रपति -
3 जुलाई 1974 को फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने केन्द्रीय खाद्य एवं कृषि मंत्री के रूप में अपना त्यागपत्र दे दिया। कांग्रेस पार्टी इन्हें अगले राष्ट्रपति चुनाव हेतु अपना प्रत्याशी बनाना चाहती थी। उस समय कांग्रेस बहुत मज़बूत स्थिति में थी और उसके प्रस्तावित उम्मीदवार का राष्ट्रपति बनना तय था। राष्ट्रपति चुनाव का परिणाम 20 अगस्त 1974 को घोषित हुआ। कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में इन्हें विजय प्राप्त हुई। तब इनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार त्रिदीप चौधरी थे, जिन्हें विपक्ष की आठ पार्टियों ने अपना उम्मीदवार बनाया था। फ़ख़रुद्दीन अली को डाले गए वोटों का 80 प्रतिशत मिला था।
इस चुनाव से पुन: साबित हुआ कि भारत की धर्मनिरपेक्षता सर्वोपरि है। इस प्रकार एक 'काज़ी' के पौत्र ने देश का सर्वोच्च पद प्राप्त किया। इनका राष्ट्रपति निर्वाचित होना विभिन्न अल्पसंख्यक समुदायों की जीत थी। इससे देश में साम्प्रदायिक सौहार्द बढ़ा और मुस्लिम वर्ग में बढ़ता असंतोष कम हुआ। राष्ट्रपति नियुक्त होने के समय यह लोक सभा के सदस्य भी थे, अत: उन्होंने 21 अगस्त 1974 लोक सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। 24 अगस्त 1974 को सुबह 9 बजे फ़ख़रुद्दीन अली ने भारत के पाँचवें राष्ट्रपति के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ग्रहण की। सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश श्री ए. एन. रे ने इन्हें उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं इनके साथियों की उपस्थिति में हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में शपथ ग्रहण कराई। 31 तोपों की सलामी के मध्य इन्होंने राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभाला। 1975 में सऊदी अरेबिया के तत्कालीन राजा फैसल के निधन पर फ़ख़रुद्दीन अली अहमद भारत सरकार के प्रतिनिधि की हैसियत से अंतिम संस्कार में उपस्थित हुए। यह भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के साथ उपस्थित हुए एकमात्र राष्ट्राध्यक्ष थे। बाकी राष्ट्रध्यक्ष मुस्लिम देशों के प्रतिनिधि के रूप में इस मौके पर उपस्थित हुए थे। राष्ट्रपति बनने के बाद यह हंगरी और यूगोस्लाविया की सरकारी यात्रा पर भी गए। फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने देश में उर्दू को उचित सम्मान दिलाने के लिए विभिन्न स्तर कर कार्य किए। लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि कोई भी भाषा राष्ट्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा प्रचलित भाषा नहीं बनाई जा सकती, जबकि वह भाषा आम लोगों में प्रचलित न हो अथवा आम लोगों के संस्कारों में न हो। उस समय भाषा को लेकर जो आंदोलन किए जा रहे थे, उनके संबंध में फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने स्पष्ट चेतावनी दी कि भाषाओं को जबरन थोपना ठीक नहीं होगा। उन्होंने उर्दू भाषा को लेकर मुस्लिमों को भी सावधान किया कि मात्र उर्दू ही मुस्लिमों की भाषा नहीं है। किसी भी धर्म की कोई एक ही भाषा नहीं हो सकती।
फ़ख़रुद्दीन अली ने मुस्लिमों को संदेश दिया कि समस्त दुनिया में मुस्लिमों की अलग-अलग भाषाएँ हैं। इन्होंने उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया कि ईरान के लोग पर्शियन भाषा बोलते हैं, तुर्की नागरिक टर्किश भाषा बोलते हैं, इंडोनेशिया के मुस्लिम इंडोनेशियाई भाषा बोलते हैं, पंजाब के मुसलमान पंजाबी भाषा बोलते हैं और महाराष्ट्रीयन मुस्लिम मराठी भाषा बोलते हैं। वह व्यक्तिगत जीवन में स्वयं भी समस्त भाषाओं का सम्मान करते थे और इनका व्यक्तित्व हिन्दुस्तानी संस्कृति का मिला-जुला रूप था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के दफनाए जाने के स्थान की व्यवस्था में पूर्ण सहयोग प्रदान किया। इन्हें संसद मार्ग पर स्थित 'ग्रीन डोम्ड जामा मस्जिद' में राष्ट्रीय सम्मान के साथ दफनाया गया। 13 फरवरी 1977 को शाम 4.30 बजे इनका पूर्ण मुस्लिम रीति-रिवाजों के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इस स्थान पर फ़ख़रुद्दीन अली नमाज़ अदा करने भी आते थे और यहाँ से इनका रूहानी लगाव भी था। यह संयोग ही था कि इनका निधन 11 फरवरी 1977 को शुक्रवार के दिन हुआ। इनके अंतिम संस्कार में कई विदेशी हस्तियों ने शिरकत की जिनमें जिमी कार्टर (अमेरिकी राष्ट्रपति) की माता लिलियन कार्टर एवं पुत्र चिप कार्टर भी थे। भारत सरकार ने फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के निधन की अधिसूचना काली पट्टी वाले गजट में प्रकाशित की। इस प्रकार एक राष्ट्रवादी व्यक्तित्व का अंत हुआ, जो 40 वर्षों से देश-सेवा के कार्य में समर्पित था। पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय ज़ाकिर हुसैन के साथ फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की गहरी मित्रता थी। दोनों ही भारत के राष्ट्रपति पद पर पहुँचे। यह संयोग ही था कि दोनों की मृत्यु राष्ट्रपति भवन के स्नानगृह में फिसलने के बाद हुई और दोनों की मृत्यु का कारण हृदयाघात रहा।
Fakhruddin Ali Ahmed (13 May 1905 – 11 February 1977) was the fifth President of India from 1974 to 1977 and also the 2nd President of India to die in office.
Fakhruddin Ali Ahmed was born on 13 May 1905 at the Hauz Qazi area of Old Delhi, India.His father, Col. Zalnur Ali Ahmed, was the first indigenous Assamese person and the first indigenous person from northeast India to have an M.D. (Doctor of Medicine) degree.His mother, Sahibzadi Ruqaiyya Sultan, was a daughter of the Nawab of Loharu. Ahmed's grandfather, Khaliluddin Ali Ahmed, was from Kacharighat near Golaghat, Assam, and hailed from a well-known indigenous Assamese Muslim family.He married with a indigenous Assamese Muslim girl named Begam Abida Ahmed of Assam.
Ahmed attended St. Stephen's College, Delhi, and St Catharine's College, Cambridge. He was called to the Bar from the Inner Temple of London and began legal practice in the Lahore High Court in 1928.
He met Jawaharlal Nehru in England in 1925. He joined the Indian National Congress and actively participated in the Indian Freedom Movement. In 1942 he was arrested during the Quit India Movement and sentenced to 3 1/2 years' imprisonment.[2] He was a member of the Assam Pradesh Congress Committee from 1936 and of AICC from 1947 to 1974, and remained the Minister of Finance, Revenue and labour in 1938 Gopinath Bordoloi Ministry.
After Independence he was elected to the Rajya Sabha (1952–1953) and there after became Advocate-General of the Government of Assam. He was elected on Congress ticket to the Assam Legislative Assembly on two terms (1957–1962) and (1962–1967) from Jania constituency.
Subsequently, he was elected to the Lok Sabha from the Barpeta constituency, Assam in 1967 and again in 1971. In the Central Cabinet he was given important portfolios relating to Food and Agriculture, Co-operation, Education, Industrial Development and Company Laws.
Chosen for the presidency by the Prime Minister, Indira Gandhi, in 1974, and on 20 August 1974, he became the second Muslim to be elected President of India. He is known to have issued the proclamation of emergency by signing the papers at midnight after a meeting with Indira Gandhi the same day. He used his constitutional authority as head of state to allow her to rule by decree once the Emergency in India was proclaimed in 1975.
He is well known among Indian diplomats for his visit to Sudan in 1975.He was the second Indian president to die in office, on 11 February 1977. His death occurred after he collapsed in his office while preparing to attend his daily Namaz prayer. The cause of his death was a heart attack. He was 72 then. Today his grave lies right across the Parliament of India next to the Sunhari Masjid, at Sansad Chowk, in New Delhi.
Honours
He was awarded an honorary doctorate by the University of Pristina, in Kosovo, in 1975, during his visit to Yugoslavia.
He was elected President of the Assam Football Association and the Assam Cricket Association for several terms; he was also the Vice-President of the Assam Sports Council.
In April 1967, he was elected President of the All India Cricket Association. He was a member of the Delhi Golf Club and the Delhi Gymkhana Club from 1961. In 1942 he was arrested in the Quit India movement and sentenced to 3 1/2 years' imprisonment.[2] He was a member of the Assam Pradesh Congress Committee from 1936 and of AICC from 1947 to 74, and remained the Minister of Finance, Revenue and labour in the 1938 Gopinath Bordoloi Ministry and he is the first president to establish the industrial act
In his honour a medical college Fakhruddin Ali Ahmed Medical College has been named after him at Barpeta Assam.